मैं उदास हूं
क्यों हूं
मुझे मालूम नहीं
रह-रह कर आंखें भर आती है
बिन कारण आंसू बहने लगते हैं
अपने से पूछती हूं
मैं उदास क्यों हूं ?
मन अकेला है ,जी उचाट है
अन्दर कुछ टूट रहा है
मालूम नहीं ,बस
मैं उदास हूं
भीड़ से डर लगता है
मौन अच्छा लगता है
अपने से बातें करने को
जी चाहता है
ऐसा क्यों है , मालूम नहीं
बस मैं उदास हूं
शायद मेरा मन चाहा नहीं
हुआ हो
मैं जो चाहती थी
वह न मिला हो
या इस संसार को
कुछ दे न सकी
इस बात का मलाल हो
जो अंदर ही अंदर
पैंठ गया हो
मुझे मालूम भी न हो
पर मेरी अंतरात्मा मुझे
कचोट रही हो
जिसे मैं जान न पाई
शायद मैं इसीलिए
उदास हूं
Beautifully written.
बहुत सुंदर!